27 October 2020

दिल दियां गलां

अगर किसी के बारे में या उसके व्यवहार के बारे में एकदम सही से जानना हो तो रुकिए और थोड़ा शबर करिये, तब तक, जब तक आप उसे एक बार क्रोध में नहीं देख लेते..उसके क्रोध के वक़्त ही उसका सबसे असली रूप आपके सामने होगा..बाकी सब मुखौटा है..

मैं खुद गुस्से में खुदसे बिछड़ जाता हूँ, जब मैं कभी क्रोध में होता हूँ तब मैं लोगों के सामने बिल्कुल अपनी पहचान के विपरीत दिखाई देता हूँ.. और ये किसी और से नहीं सुना है मैंने, मैंने महसूस किया है..मैं जानता हूँ कि मैं वो बिल्कुल नहीं हूँ जो मैं दिन रात बना फिरता हूँ...

मेरा भी असली चेहरा, उसके सिवा कोई और नहीं जानता है.. वो जानती है कि दिन रात से उसे ख़ुश रखने के वादे करने वाला, और अक्सर उसे खुश रखने वाला व्यक्ति जब ज़रा से आवेश में आ जाता है तो खुदकी दी हुई उन तमाम खुशियों का गला घोंटकर हत्या कर देता है, उसके प्रेम की हत्या कर देता है, उन खुशियों की जो तिनके की तरह इकट्ठी की गई थी साथ में उनकी बलि चढ़ा देता हूँ अपने आवेश में..

फिर कैसे मैं अकेला ही उन सब को बर्बाद कर देता हूँ एक क्षण में.. बिना तुम्हारी इज़ाज़त लिए, बिना ये सोचे हुए की मैं अपना ज़रा से दिए हुए के बदले, उससे उसका कई गुना ले रहा हूँ एक पल भर के गुस्से में..बस इसीलिए शायद मुझे लगता है कि इंसान की अगर सही पहचान चाहिए तो उसे क्रोध में देखिए..क्रोध में किया गया उसका व्यवहार ही उसकी असली पहचान होगी..

और फिर भी मैं अपने इस असली चेहरे को दुनिया से छुपा कर रखने के लिए जाने कितने ही ढोंग करता हूँ दुनिया के सामने..तुम्हारे सामने..!!